पूरी दुनिया भर में ऐसे बहुत सारे त्यौहार होते हैं जो कि मौसम से जुड़े हुए होते हैं इसमें कई रस्में होती हैं।
सर्दी गर्मी पतझड़ हो या फिर बहार सबके अपने अपने अलग रंग होते हैं। यही वजह है कि बदलते हुए मौसम का हर कोई अपने अलग अलग अंदाज में स्वागत करता है।
सूखे के खतरे से दो-चार होने वाला बलूचिस्तान के कई इलाकों में बर्फबारी को उम्मीद की निशानी और खुशहाली का पैगाम समझा जाता है। इसलिए बर्फबारी की शुरुआत पर पारंपरिक तरीके से यहां पर खुशी का इजहार किया जाता है।
इस प्रांत के कुछ इलाकों में पुराने जमाने से ही रसमें चली आ रही है। जहां बर्फबारी की खुशी में एक दिलचस्प रसम की जाती है।
इस रस्म में बर्फ का गोला बनाकर किसी भी बहाने से अपने करीबी दोस्तों रिश्तेदारों और जानने वालों के घर पहुंचाने पर खाने की दावत का हकदार बना जा सकता है जबकि नाकामी की स्थिति में दावत देने भी पड़ सकती है।
पूशतो भाषा में इस बर्फबारी के त्योहार को वावरीन दूद या फिर बर्फबारी की रसम जबकि फ़ारसी और दरी में बर्फी कहा जाता है। पुश्तो भाषा के लेखक अब्दुल रउफ रफीकी के मुताबिक बलूचिस्तान में और सर्द इलाकों में यह रस्म पश्तून अक्सरिति में बहुत जोश और खरोश के साथ मनाई जाती है।
अरब न्यूज़ के साथ बात करते हुए उन्होंने बताया कि ज्यादातर ये रस्म अफगानिस्तान और तजाकिस्तान में रहने वाले लोग मनाते हैं क्योंकि इस क्षेत्र में ज्यादा बर्फबारी होती है।
इस काम के लिए किसी छोटे और फुर्तीले तेज दिमाग वाले लड़कों को चुना जाता है जिसे कहा जाता है कि घर वालों के ध्यान के बगैर ही किसी बहाने से बर्फ के गोले कौ उन के घर छोड़ कर जल्द से जल्द वहां से भाग आए अगर वह बर्फ के साथ पकड़ा जाता है तो उल्टा उन्हें ही खाने के लिए दावत देनी पड़ सकती है।