दुनियाभर में अलग अलग देशों के अंदर मुस्लिम महिलाओं का पर्दे में या इससे बाहर क्या अस्तित्व है। नॉर्वे की पत्रकार और लेखिका बीगिरटे ने एक किताब लिखकर मुस्लिम महिलाओं की स्थिति को दर्शाया है।
क़िताब के मुताबिक मिस्र में असल आज़ादी की ज़रूरत है। मध्यपूर्व में महिलाएं अपनी लड़ाई लड़ने में अब तक नाकाम रही हैं उनका कहना है कि पितृसत्तात्मक समाज में जिंदगी को तय करने का हक महिलाओं को नहीं मिलता है उन्हें वह आजादी नहीं मिल पाती जो उन्हें चाहिए।
अरब समाज में बदलाव को नहीं अपनाया जा रहा है अत्याधुनिक बदलावों को छोड़कर पुरानी परंपरा के साथ जीवन बिताना इनकी जीवन शैली है।
वहीँ फिलिस्तीन और इज़राइल पर पूरी तरह से मर्दों का कब्ज़ा है, खासतौर से यह कब्ज़ा सैन्य का है इन दोनों देशों के बीच सालों से चल रहे विवाद पुरुषों के मध्य ही है।
अगर बात करें यमन की तो यहाँ पर कुछ लोगों का कहना है कि यमन में पुरुष वर्ग के लोग महिलाओं से डरते हैं महिलाओं को आर्थिक सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों से वंचित रखते हैं
उन्हें डर है कि अगर महिलाएं सभी क्षेत्रों में आ गई तो पुरुषों पर हावी हो सकती है।
लीबिया में महिलाएं अंदर से इतनी ज़्यादा मजबूत है कि वह खुद अपने बच्चों के हाथ मे हथियार देकर उन्हें जँग के लिए भेजती हैं
वह ख़ुद जँग का हिस्सा ना होकर भी उसमें अपना योगदान दे रही हैं।
जॉर्डन में एक महिला अधिकारी ने वताया की यहां पर इज़्ज़त के नाम पर हत्याएं होती हैं समाज में हो रहे हर छोटी बड़ी चीज के लिए महिलाओं को ही जिम्मेदार ठहराया जाता है
ब’लात्कार से लेकर उत्पी’ड़न तक, लड़कियों को जन्म देने के लिए, यहाँ तक कि पुरुषों के अन्दर धोखेबाजी और व्यभिचार की भावना के लिए भी उन्हें ही जिम्मेदार ठहराया जाता है।